ईडाणा माताजी मन्दिर राजश्थान। Idana Mata Temple. Dharmik sthal. Travel. ऐसा मन्दिर जहा हर महीने आग लगती है।
हमारे देश मे कितनों चमत्कारी मंदिर है। एक मंदिर में भगवान की मूर्ति पे प्रसाद के रूप में दारू चढ़ाया जाता है, तो दूसरी तरफ मंदिर का स्तम्भ जमीन पर नहीं बल्कि हवामें लटकता है। और तीसरी मंदिर की मूर्ति बिजली के कारण टूट जाती है, तो कोई जगह तेल की जगह पानी से दिए जलते है। वैसे देखा जाए तो हमारे देश मे हर मंदिर के साथ कुछ ना कुछ चमत्कारी बात जुड़ी हुई है।
ईडाणा माताजी मन्दिर राजश्थान।
उदयपुर जिल्ले की ईडाणा गांव की ईडाणा मंदिर की आज हम बात कर रहे है। इधर ईडाणा माता विराजमान है। वर्षो पहले यहां एक ईडाणा नाम की रानी थी। उसके नाम पे यह मंदिर बनाया गया था। लोग कहते है कि यहां ईडाणा माता जब भी प्रसन्ना होती है तव वहां स्वंय आग प्रज्वलित हो जाती है। भक्तों को उस आग का दर्शन होता है। यह आग सामान्य आग या छोटे मोटे आग नहीं होती। यहां ज्यादा प्रमाण में आग लगती है। आग लगती है तब मंदिर में पीपल के पेड़ को भी नुकशानहोता है। कभी पीपल के पेड़ को पूरा नुकशान नही होता। आग ज्यादा लगी हो तो पीपल की कुछ डालिया जल जाती है।
इस आग के कारण माताजी के आसपास के कुछ चीजें जल जाती है। जैसे कि माता को अर्पित किया हुआ थाली, उसके आभूषण उसके कपड़े सब जल जाते है। पर आज तक माता की मूर्ति के आग के कारण कोई तकलीफ नहीं होती। यह मंदिर खुल्ले में ही बनी हुई है। उसके ऊपर छत नहीं है। आग कहा से लगती है, कैसे लगती है, क्यों लगती है इसके बारेमे किसी को नहीं पता। इतना ही नही उसे बुझाने के लिए उसपे पानी नहीं डाला जाता। वहां के रहवासी कहते है कि मंदिर में जब भी आग लगती है, तो उसे बुझाने की कोई कोशिस नहीं करता। बहोत साल पहले किसीने ऐसा किया होने का मानने में आता है, आग बुझाने के कारण उसे बहोत समस्याओं का सामना करना पड़ा था। इस लिए ऐसा मानने में आता है कि आग खुद माता की इच्छा से लगती है, और जब माताजी की इच्छा पूरी होती है तो आग अपने आप बुझ जाती है।
ईडाणा माता का मंदिर उदयपुर से 70 किलोमीटर दूर स्थित है। कहते है कि महाभारत काल से यह मंदिर बना हुआ है। इसी तरह खुल्ले में हजारों सालों से ऐसा ही है। इस मंदिर में कोई पुजारी भी नहीं है। यहां आने वाले तमाम माता का भक्त और सेवक ही है। मंदिर की जगह अग्नि के कारण गर्म रहता है। हर महीने एक या दो बार यहां आग लगती है। नवरात्रि में यहां भक्तों की भीड़ कभी देखने को मिलती है। माताजी की त्रिशूल ओर चुंदरी चढ़ाया जाता है।
लकवले वाले लोग यहां ठीक हो जाते है।
वर्षो से वक मान्यता है कि यहां लकवे का इलाज माताजी करती है। जिसे भी लकवे का असर हुआ हो उन लोगो को यहां ले आया जाता है। उसके नाम पे त्रिशूल या चुंदरी चढ़ाने ने लकवाग्रस्त व्यक्ति ठीक हो जाते है। वो व्यक्ति कुछ ही समय मे ठीक होकर खुद मंदिर में दर्शन करने आते है। यहां आग लगने का दो कारण होता है। एक तो ये की माताजी खूब खुश हो तो यहां आग लगती है, और दूसरा माताजी के माथे पे चढ़ाए हुए चुंदरी का भार बढ़ जाता है तब आग लगती है।
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