यह कहानी एक महिला की है। जिनकी उम्र लगभग 50 वर्ष है। और मैं एक ऑफिस में काम करती हूं। मेरे घुटने में हमेशा दर्द रहेता है। आने जाने में बहुत समस्या होती है पर क्या करु family चलाने के लिए घर चलाने के लिए जॉब करनी पड़ती है। 1 दिन ऑफिस से निकली घर के लिए बस स्टॉप पर पहुंची। हमेशा की तरह बस में बैठने की जगह नहीं थी। बहुत सारी भीड़ थी। बहुत देर तक इंतजार करती रही आखिरकार एक बस आई। बस में अंदर चढ़ी तो देखा तो उसमें भी बैठने की जगह नहीं थी। अचानक से एक आवाज आई ! मैडम आपके लिए सीट खाली है बैठ जाइए। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो मैडम कहने वाली जो थी वह एक मजबूरन थी।
वह भी अपना काम करके शाम में अपने घर के लिए रवाना हुई थी। मैंने गौर से देखा तो यह चेहरा मेरे साथ उस स्टॉप पर खड़ा था। मैंने ध्यान ही नहीं दिया। मैंने उनका शुक्रियाअदा किया और कहा धन्यवाद बहन जी। आपने मुझे मौका दिया बैठने का। मुझे अच्छा लग रहा था मैं ऊपर वाले से धन्यवाद कह रहे थे कि इतने अच्छे अच्छे लोग दुनिया में है। कुछ देर बाद जो महिला सीट पर बैठी थी उसके बाजू वाली सीट पर जो महिला बैठी थी उसका स्टॉप आ गया था वह चली गई। वह सीट खाली हो गई। मैंने उस महिला से कहा कि बहन जी इधर एक सीट खाली है आकर बैठ जाइए। लेकिन वो आकर के नहीं बैठी।
सीट खाली थी। एक और महिला उस बस में खड़ी थी जिसके हाथ में बच्चा था। उस बैंक जी ने उसको भी खाली सीट पर बैठा दिया। थोड़ी देर के बाद उनका भी स्टॉप आया वह भी उतरकर के चली गई। मैंने उस मजदूरन को फिर से आवाज दी। आइए बैठ जाइए फिर से सीट खाली हो गई। लेकिन वह मजदूरन भीड़ में खड़ी थी। एक और बृद्ध आदमी उस बस में चढ़ा जिसकी उम्र 70 से 75 साल होगा। फिर उस मजदूरन ने उस बृद्ध व्यक्ति को बैठने के लिए सीट दे दी। मैंने उस मजदूरन को बहुत बहुत कहा कि बैठ जाइए पर वह नहीं मानी।
उस टॉप में बहुत ही कम लोग बैठे थे और आखरी स्टॉप आने वाला था। तो मैंने कहा अब तो बैठ जाइये। वह जो मजबूरन थी वह आकर बैठ गई। फिर मैंने उस मजदूरन से पूछा की एक बात बताइए आपने मुझे बैठने का मौका क्यों दिया आपके पास तो पहले से ही सीट थी आप तो आराम से बैठी थी। उन्होंने कहा कि क्या बताऊं। मैंने आपको उस स्टॉप पर देखा था। मुझे लग रहा था कि आपके पैरों में तकलीफ है। जब आप बस में चढ़ रहीं थी तब भी लग रहा था कि आप बड़े तकलीफ में है। मुझसे रहा नहीं गया इसलिए मैंने आपको बैठने के लिए सीट दे दी।
फिर मैंने उनसे कहा कि दो-तीन बार सीट खाली हुई। तब आप बैठ जाती। तब उस मजदूरन ने कहा! मैं बैठ सकती थी लेकिन मैंने देखा कि एक और महिला थी जो अपने बच्चे को गोद में लेकर खड़ी थी और बच्चा रो रहा था मुझसे यह देखा नहीं गया इसलिए मैंने उसको सीट दे दी। फिर वह बृद्ध आदमी जो देखने में बहुत ही कमजोर लग रहा था। वह खड़ा रहता और मैं बैठी रहती अच्छा नहीं लगता। और तो वह जाते जाते मुझे आशीर्वाद देकर गया। फिर मैंने उनसे पूछा की आप यह रोज करती है कि यह सिर्फ आज कर रही हैं। फिर वह मजदूर ने कहा या मैं रोजाना करती हूं। क्या बताओ मैडम मेरे पास पैसे तो है नहीं। मैं कुछ दान तो कर नहीं सकती हूं।
मेरे पास कुछ भी नहीं है पुण्य कमाने के लिए। रास्ते में जो कचरे पड़े थे उसे साफ कर देती हूं ईट पत्थर रोड पर होते हैं उसे हटा देती हूं मेरे पास जो खाना बचता है वह जानवरों को खिला देती हूं और बस में मुझे लगता है कि जिसको खड़े रहने में मुश्किल होती हो उसे मैसेज दे देती हूं। यह छोटी सी यात्रा वह कहती है मैंने काफी कुछ सीखा और जो मजदूरन थी जो मजबूरी कर रही थी पता नहीं कितना बड़ा लिसन दे दिया। दुनिया में कई लोग कुछ काम कर रहे होते लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए कर रहे होते हैं। वह कहते हैं वह चुपचाप काम कर रहीं थीं। जितना कुछ बन सकता था वह दूसरों के लिए कर रहीं थीं।
इन से हमे यह सिख मिलती है कि हमारे पास जो कुछ भी है जितना भी है उन से खुसी बाँटिये। जरूरी नही की ज्यादा हो तभी बाँटना चाहिए।
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